अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे की जरूरत हैं

अधिकार लोगों की जरूरत है. कर्तव्य निष्ठा है. या यूं कहें कि अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे के पूरक हैं. इन्हें एक ही सिक्के के दो पहलू कहा जाता है. हमें कोई भी अधिकार तभी प्राप्त होता है जब अन्य नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करें. अन्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए.

जब हम कानून और राज्य को अधिकारों का संरक्षक कहते हैं तो कानून और राज्य के आदेशों का पालन करना नागरिकों का कर्तव्य हो जाता है. तभी उनके अधिकार सुरक्षित रह सकते हैं.

यह बात ध्यान देने की है कि राजनीति विज्ञान में अधिकार और कर्तव्य का उल्लेख नागरिक के संदर्भ में करते हैं. सीधा-सीधा इसका मतलब ये है कि नागरिक के अधिकारों और कर्तव्यों की बात करते हैं. इसके साथ ही कुछ विशेष चीजों पर ध्यान दें तो हम राज्य के अधिकारों और कर्तव्यों की बात भी कर सकते हैं. उस हालत में राज्य के अधिकार व्यक्ति के कर्तव्य बन जाते हैं और राज्य के कर्तव्य व्यक्ति के अधिकार बन जाते हैं.

भारतीय संविधान में जिन 'मूल अधिकारों ( Fundamental Rights)' की व्यवस्था की गई है, वे नागरिकों के अधिकार हैं. दूसरी ओर 'राज्य के नीति निदेशक तत्वों (Directive Principles of State Policy)'  में राज्य के जिन कर्तव्यों का निरूपण किया गया है वे भी व्यक्ति के अधिकार हैं. 

अब भारतीय संविधान में 'मूल कर्तव्यों (Fundamental Duties)' की व्यवस्था भी कर दी गई है. ये नागरिकों के कर्तव्य हैं यानी राज्य के अधिकारों की आधार-शिला हैं.

अधिकारों और कर्तव्यों का निर्वाह साथ-साथ होना चाहिए. अकेले अधिकार अराजकता (Anarchy) को जन्म देंगे और उसमें वे खुद भी निरर्थक और निराधार हो जाएंगे. अकेले कर्तव्य नृशंसतंत्र (Tyranny) को जन्म देंगे, जिसमें नागरिकों का व्यक्तित्व कुंठित हो जाएगा.



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