धार्मिक स्वतंत्रता आपका मौलिक अधिकार है!

धार्मिक स्वतंत्रता. दो शब्द हैं. दोनों शब्दों का मतलब भी अलग-अलग है, लेकिन दोनों शब्दों के जुड़ाव से लोगों का मूलभूत अधिकार बनता है. सरल शब्दों में धार्मिक का मतलब धर्म से है. हिंदू , मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन और बौद्ध जैसे अनेकों धर्म हैं, पूरे देश भर में.

स्वतंत्रता का मतलब लोगों की गतिविधियों पर किसी तरह की रोकटोक न होना और साथ ही लोगों के विकास के लिए अवसर प्रदान करना.

कुल मिलाकर धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है किसी भी धर्म को अपनाना, अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने का अधिकार, दान देने का अधिकार.

धार्मिक स्वतंत्रता का ज़िक्र भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है. यह भाग लोगों के मूलभूत अधिकार से संबंधित है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करते हैं.

इन अनुच्छेदों में दिए गए स्वतंत्रताओं का उल्लेख बहुत व्यापक शब्दों में किया गया है. धार्मिक अल्पसंख्यकों की पूर्ण संतुष्टि को ध्यान में रखकर किया गया है.

अनुच्छेद-25 के तहत किसी भी धर्म को अपनाने, मनाने, आचरण करने और प्रसार करने का अधिकार प्राप्त है.

सिखों को कृपाण धारण करना और उस कृपाण को साथ में लेकर चलना धार्मिक स्वतंत्रता का अंग माना गया है.

अनुच्छेद-26 के तहत प्रत्येक व्यक्ति और धार्मिक संगठन को धार्मिक कार्यों के प्रबंध का अधिकार है.

इसके साथ ही कुछ और भी अधिकार हैं जैसे:

A. धार्मिक संस्थाओं और दान से स्थापित सार्वजनिक सेवा संस्थानों की स्थापना करना, उनका पोषण करने का अधिकार.

B. धर्म सम्बंधी निजी मामलों का स्वयं प्रबंध करने का अधिकार.

C. चल और अचल सम्पत्ति को लेने और स्वामित्व का अधिकार.

D. सभी सम्पत्तियों का क़ानून के मुताबिक़ संचालन करने का अधिकार.

अनुच्छेद-27 के तहत किसी भी व्यक्ति को किसी भी एक धर्म और धार्मिक संप्रदाय के विकास या देखभाल में ख़र्च करने के लिए करों (टैक्स) के संदाय के लिए बाध्य न करना.

अनुच्छेद -28 के तहत राज्य के पैसों से पूरी तरह पोषित किसी शिक्षा संस्था में धार्मिक शिक्षा न दी जाए. भारत, एक धर्मनिरपेक्ष देश है, इसलिए देश को धार्मिक क्षेत्र में भी निष्पक्ष रहना है.

इसके साथ ही राज्य से मान्यता प्राप्त या आर्थिक सहायता प्राप्त शिक्षण संस्था में किसी व्यक्ति को किसी धर्म विशेष की शिक्षा विशेष की शिक्षा लेने के लिए ज़बरदस्ती नहीं किया जा सकता है.

लेकिन राज्य सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिक हितों को ध्यान में रखकर इन अधिकारों पर प्रतिबंध लगा सकता है. इसी तरह से आर्थिक, राजनीतिक और अन्य किसी तरह से सार्वजनिक हित की दृष्टि से राज्य धार्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकता है.

राज्य, सामाजिक हित और सुधार के काम भी कर सकता है, चाहे ऐसा करते हुए धार्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप ही क्यों न करना पड़े.

इस तरह सार्वजनिक हित की दृष्टि से उचित प्रतिबंधों के साथ संविधान के तहत सभी लोगों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता की व्यवस्था की गई है.

भारतीय नागरिकों के साथ-साथ विदेशी लोगों को भी ये अधिकार प्राप्त हैं. शत्रु देशों के नागरिकों को इसमें के कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं है.

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